।।जय जय जाम्भाणी संस्कार शिविर, सिरसा।।
आज आषाढ़ बदी अष्टमी विक्रमी सम्वत् 2080 रविवार तदनुसार 11जून, 2023 को कन्याओं हेतु जाम्भाणी संस्कार शिविर, सिरसा मेरा लेक्चर "वन-संपदा रक्षा में बिश्नोई बलिदान परंपरा भाग-4" क्योंकि बिश्नोई लोग वन अर वन्यजीवों के रक्षक बनकर "हमसफ़र" रहें हैं। इस शोधालेख में छोटे बेटे विकास की प्रमुख भूमिका रही है। लेखनी दैनिक कविता प्रतियोगिता "हमसफ़र" विषय पर चौथे भाग की एक विशेष काव्य रचनाः
*वन सम्पदा हेत बिश्नोई बलिदानी परंपरा*
पर्यावरण अर संस्कार शिविर है।
सभी यहाँ कन्याएं है रिसीवर है।।
संस्कार को हम सर्वोच्च मानते हैं।
गुरु संस्कार बखान वो जानते है।।
म्हारा संस्कार से रिश्ता पुराना है।
स्वच्छ लक्ष्य संसार ही बनाना है।।
सभा का 32वर्ष से ये निशाना है।
शिरोमणि बिश्नोई संस्कार देना है।।
इस शिविर में लेक्चर मेरा हुआ।
शिविरार्थियों का सुंदर सवेरा था।।
जीव दया पालणी गुरु बतावै है।
कदै भी रूंख लीलो नहीं घावै है।
शिविर में सैंकड़ों कन्या आई है।
वन्य सम्पदा रक्षा उन्हें भाई है।।
बिश्नोई पंथ बलिदानी परम्परा है।
वन र वन्य जीव रक्षा म्हें करां है।।
इन 29नियमों में से दो नियम है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम है।।
जीवदया पालणी करने पालन है।
रूँख लीलो नहीं घावै" पोषण है।।
सदगुरु श्री जाम्भोजी की दृष्टि है।
वृक्ष बिना नहीं कोई यह सृष्टि है।।
वृक्ष भेदभाव बिन दे आक्सीजन।
हर प्राणियों को देंते आक्सीजन।।
श्री गुरु जाम्भोजी की परंपरा में।
वृक्ष और जीवोंहित हाँ मरा म्हें।।
महाविद्वान जाम्भाणी वे संत थे।
समाज सुधारक वील्ह विरक्त थे।।
पौराणिक आख्यान समझाया है।
उन्होंने प्रकृति महत्व बताया है।।
मूल तत्व वृक्ष संहार ना करना।
पर्यावरण की बात ध्यान रखना।।
प्रकृति एवं वृक्ष ब्रह्म समान है।
वृक्ष ही तो मूल तत्व जीवन है।।
वृक्ष आदि स्थावर सब सृष्टि है।
ब्रह्म रूप यही जान समष्टि है।।
जाम्भाणी संत पर्यावरण हित।
चेताया है इसके संरक्षण नित।।
बहुत ही सघन और शानदार।
किया आग्रह सुंदर ये प्रचार है।।
पढ़कर वील्होजी की वाणी है।
वन्य सम्पदा की मर्म जाणी है।।
वृक्षरक्षा सर्वस्व करे न्योछावर।
वीरगति तक है नसीहत दे कर।।
कहै है *जीवदया नित राख।*
*पाप नहीं कीजियै* विशात।।
जाण्डी/वृक्ष हिरण संहार देख।
अहिंसक रूप में सिर दीजियै।।
तभी शिरोमणी बिश्नोई पंथ के।
लोग माने आदेश गुरु जंभ के।।
तो *जीवदया पालणी माने।*
*रूंख लीलो नहीं घावै* जाने।।
गुरु श्रीजाम्भोजी के माने आदेश।
प्रशस्त मार्ग यही देश अर प्रदेश।।
बिश्नोई ये कड़ाई से अपनाया है।
निज पर ये लागू कर दिखाया है।।
आज तक गुरु आदेश मानते हैं।
वन संपदा रक्षा करना जानते हैं।।
अनेकानेक वीर-वीरांगनाओं ने।
गरज हुए प्राण न्योछावर करने।।
गुरु श्रीजाम्भोजी आदेश दिया है।
जीव-वृक्षा रक्षा पर जोर दिया है।।
लुप्तता होते मृगों-कृष्ण मृगों की।
करे हिमायत उनके संरक्षण की।।
मृगो्ं (कृष्ण मृगों), खेजड़ी हेत है।
जांडी आदि की रक्षा हर खेत है।।
कई बिश्नोई स्त्री-पुरुष र बच्चों।
निज प्राण तक न्योछावर अच्छों।।
विश्व में लोग आत्मरक्षा में मरै हैं।
निज रक्षा प्राण न्योछावर करै है।।
ईज्जत बचाने हेतु लोग मरते हैं।
देश सीमा रक्षा हेतु भी मरते हैं।।
परंतु वन र वन्य सम्पदा के लिए।
वृक्षों-मृग, कछुवों पे कब प्राण दिए।।
वन्य प्राणी-पशुओं रक्षा करते है।
शिरोमणी बिश्नोई पंथी मरते हैं।।
वन र वन्यजीवों के हमसफ़र हैं।
इनकी रक्षा में अनेक गये मर है।।
पृथ्वीसिंह' आगामी अंक में देंगे।
पाँचवां भाग सबको समझा देंगे।।
©
'कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई'
राष्ट्रीय सचिव, जेएसए, बीकानेर,
लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार,
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी-प्रवक्ता अखिल भारतीय
जीवरक्षा बिश्नोई सभा, अबोहर, हॉउस नं. 313,
सेक्टर 14 (श्री ओ३म विष्णु निवास)
हिसार (हरियाणा)-125001 भारत
फोन नंबर-9518139200,
व्हाट्सएप-9467694029
ऋषभ दिव्येन्द्र
12-Jun-2023 12:24 PM
शानदार
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Abhinav ji
12-Jun-2023 09:08 AM
Very nice 👍
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Punam verma
12-Jun-2023 08:11 AM
Very nice
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